Nag Panchami पौराणिक मान्यताओं के अनुसार( पुराणों के अनुसार) नागों का अपना अलग ही लोक है जिसे ‘ नाग लोक , कहते है नाग लोक का हमारे पुराण मैं विस्तार से वर्णन हैं | जैसे इंसानो के अलग अलग समुदाय होते है, वैसे ही नागों के भी अपने अलग समाज होते हैं, और उनके त्यौहार भी होते है, जिसमे नागों को सबसे प्रिय दिन ” Nag Panchami , पौराणिक मान्यताओं के अनुसार( पुराणों के अनुसार) नागों अपना अलग ही लोक, होता है जो की हमारे हिंदी कैलेंडर के अनुसार हर महीने मैं आती है जिसको पंचमी तिथि कहते हैं ये तिथि ” शुक्ल पक्ष , मैं आती हैं अर्थात महीना दो भागो मैं विभाजित होता १५-१५ दिनों मैं तो दूसरे वाले भाग को ” शुक्ल पक्ष , कहते हैं पुराणों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पंचमी के दिन नागों की पूजा करता हैं तो वह सर्प दोष से मुक्त होता | नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाये (Happy Nagpanchami ) TODAY , 21-08-2023 – NAGPANCHAMI

सावन की ” Nag Panchami , का महत्व और नागों के श्राप का कारण
Nag Panchami , के महत्व का सवसे बड़ा कारण है ब्रह्मा जी का नागों के राजा को श्राप से मुक्त होने , का रास्ता बताना , और फिर ” नाग पंचमी की ,तिथि मैं साँपों का यज्ञ मैं जलने से बचना, अदि ऐसे बहुत से कारन हैं जोकि नाग पंचमी के महत्व को बड़ा देते है , और वही सावन का महीना नागों के लिए ज़्यादा महत्व रखता है क्योंकि ये महीना शंकर भगवान का पवित्र महीना है और शंकर भगवान नागों के ईस्ट देव हैं और शिव जी ने नागों के राजा ” वासुकि नाग ,को अपने गले पर धारण किया हुआ हैं सदा सदा के लिए ,
नागों के श्राप का कारण –
एक बार राक्षसों और देवताओंने मिलकर समुद्रका मन्थन किया। उस समय समुद्रसे अतिशय श्वेत उच्चैःश्रवा नामका एक अश्व निकला, उसे देखकर नागमाता कद्रूने अपनी सपत्नी (सौत) विनतासे कहा कि देखो, यह अश्व श्वेतवर्णका है, परंतु इसके बाल काले दीख पड़ते हैं। तब विनताने कहा कि न तो यह अश्व सर्वश्वेत है, न काला है और न लाल। यह सुनकर कद्रूने कहा—‘मेरे साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्वके बालोंको कृष्णवर्णका दिखा दूँ तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊँगी।’ विनताने यह शर्त स्वीकार कर ली। दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थानको चली गयीं। कद्रूने अपने पुत्र नागोंको बुलाकर सब वृत्तान्त उन्हें सुना दिया और कहा कि ‘पुत्रो! तुम अश्वके बालके समान सूक्ष्म होकर उच्चैःश्रवाके शरीरमें लिपट जाओ, जिससे यह कृष्णवर्णका दिखायी देने लगे। ताकि मैं अपनी सौत विनताको जीतकर उसे अपनी दासी बना सकूँ।’ माताके इस वचनको सुनकर नागोंने कहा—‘माँ! यह छल तो हमलोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। छलसे जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।’ पुत्रोंका यह वचन सुनकर कद्रूने क्रुद्ध होकर कहा—तुमलोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिये मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि ‘पाण्डवोंके वंशमें उत्पन्न राजा जनमेजय जब सर्प-सत्र करेंगे, तब उस यज्ञमें तुम सभी अग्निमें जल जाओगे।’ इतना कहकर कद्रू चुप हो गयी। नागगण माताका शाप सुनकर बहुत घबड़ाये और वासुकिको साथमें लेकर ब्रह्माजीके पास पहुँचे तथा ब्रह्माजीको अपना सारा वृत्तान्त सुनाया। इसपर ब्रह्माजीने कहा कि वासुके! चिन्ता मत करो। मेरी बात सुनो—यायावर-वंशमें बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नामका ब्राह्मण उत्पन्न होगा। उसके साथ तुम अपनी जरत्कारु नामवाली बहिनका विवाह कर देना और वह जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार करना। उसे आस्तीक नामका विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा, वह जनमेजयके सर्पयज्ञको रोकेगा और तुमलोगोंकी रक्षा करेगा। ब्रह्माजीके इस वचनको सुनकर नागराज वासुकि आदि अतिशय प्रसन्न हो, उन्हें प्रणाम कर अपने लोकमें आ गये।
सुमन्तु मुनिने इस कथाको सुनाकर कहा—
राजन्! यह यज्ञ तुम्हारे पिता राजा जनमेजयने किया था। यही बात श्रीकृष्णभगवान् ने भी युधिष्ठिरसे कही थी कि ‘राजन्! आजसे सौ वर्षके बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जायँगे। करोड़ों नाग जब अग्निमें दग्ध होने लगेंगे, तब आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागोंकी रक्षा करेगा।’ ब्रह्माजीने पञ्चमीके दिन वर दिया था और आस्तीक मुनिने पञ्चमीको ही नागोंकी रक्षा की थी, अतः पञ्चमी तिथि नागोंको बहुत प्रिय है*। पञ्चमीके दिन नागोंकी पूजा कर यह प्रार्थना करनी चाहिये कि जो नाग पृथ्वीमें, आकाशमें, स्वर्गमें, सूर्यकी किरणोंमें, सरोवरोंमें, वापी, कूप, तालाब आदिमें रहते है, वे सब हमपर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं—
ऋषियों द्वारा ” नाग पंचमी पूजा विधि ,
नाग पंचमी नागों को बहुत प्रिय है इसकी बहुत सारी अलग-२ मान्यताएं हैं , भविष्य पुराण मैं नाग पंचमी का विस्तार से वर्णन हैं , जिसमे नागों की पूजा के बारें मैं ऋषि कश्यप ने ऋषि गौतम को बतया है महर्षि कश्यपने महामुनि गौतमको उपदेशके प्रसंगमें यह भी बताया कि सदा भक्तिपूर्वक नागोंकी पूजा करे और पञ्चमीको विशेषरूपसे दूध, खीर आदिसे उनका पूजन करे। श्रावण शुक्ला पञ्चमीको द्वारके दोनों ओर गोबरके द्वारा नाग बनाये। दही, दूध, दूर्वा, पुष्प, कुश, गन्ध, अक्षत और अनेक प्रकारके नैवेद्योंसे नागोंका पूजन कर ब्राह्मणोंको भोजन कराये। ऐसा करनेपर उस पुरुषके कुलमें कभी सर्पोंका भय नहीं होता। भाद्रपदकी पञ्चमीको अनेक रंगोंके नागोंको चित्रितकर घी, खीर, दूध, पुष्प आदिसे पूजनकर गुग्गुलकी धूप दे। ऐसा करनेसे तक्षक आदि नाग प्रसन्न होते हैं और उस पुरुषकी सात पीढ़ीतकको साँपका भय नहीं रहता। आश्विन मासकी पञ्चमीको कुशका नाग बनाकर गन्ध, पुष्प आदिसे उनका पूजन करे। दूध, घी, जलसे स्नान कराये। दूधमें पके हुए गेहूँ और विविध नैवेद्योंका भोग लगाये। इस पञ्चमीको नागकी पूजा करनेसे वासुकि आदि नाग संतुष्ट होते हैं और वह पुरुष नागलोकमें जाकर बहुत कालतक सुखका भोग करता है। राजन्! इस पञ्चमी तिथिके कल्पका मैंने वर्णन किया। जहाँ ‘ॐ कुरुकुल्ले फट् स्वाहा’—यह मन्त्र पढ़ा जाता है, वहाँ कोई सर्प नहीं आ सकता१।